पंगवाड़ी भाषा वर्गी करण ओर पंगवाड़ी भाषा के बारें में कुछ:-
जि.ए. ग्रिएरसन (दूसरे पुष्टि 1969:373) ने लिखा है कि पंगवाड़ी भाषा भारतीय-यूरोपियन, भारतीय-आर्य भाषा, पहाड़ी, पश्चिमी पहाड़ी वर्ग में आती है। पांगी में आना जाना बहुत मुशिकल था इसलिए पंगवाड़ी भाषा हर दस किलो मीटर में बदल जाती है। पंगवाड़ी-किलाड़ बोली, पंगवाड़ी-पुर्थी बोली, पंगवाड़ी-साच बोली और पंगवाड़ी-धरवास बोली चार खास बोली है। बहुत से लोग कहते है कि साच बोली संसकृत भाषा से काफी मिलती जुलती है। किलाड़ पांगी घाटी का मुख्यालय है, उस बजह से यहां की बोली सब को समझ आ जाती है।
एतनोलाग किताब में लिखा है कि पंगवाड़ी भारतीय-यूरोपियन, भारतीय-इरानियन, भारतीय-आर्य भाषा, उत्तरी क्षेत्र, पश्चिमी पहाड़ी, वर्ग में आती है।
Indo-European, Indo-Iranian, Indo-Aryan, Northern zone, Western Pahari.
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पंगवाड़ी भाषा का उपयोग :- पांगी के लोगों को पंगवाड़ी भाषा में बात करना अच्छा लगता है। सभी उम्र के पांगी के लोग, पांगी के सभी लोगों से पंगवाड़ी में ही बात करते है। शादी और तीज त्योहारों में पांगी के लोग पंगवाड़ी भाषा में बात करते हैं। स्कूल में भी बच्चे पंगवाड़ी में बात करते हैं लेकिन पढ़ाई हिन्दी में होती है पांगी के लोगों को पंगवाड़ी, पहाड़ी और पहाड़ी-हिन्दी भाषा आती है। किलाड़ से दूर-दूर गांवो में औरतों को सिर्फ पंगवाड़ी भाषा आती है, पहाड़ी और हिन्दी कम समझ आती है, कुछ लोगों को चम्बियाली और पाडर भाषा आती है। बहुत से पढ़े-लिखे लोग ईन्टरनेट और फैसबुक पर पंगवाड़ी भाषा रोमन सिक्रिफ्ट में लिखते हैं। पंगवाड़ी भाषा बोलने और सुनने में हिन्दी भाषा से बहुत अच्छी लगती है, क्योंकि पंगवाड़ी भाषा में ईउफोनि है।
(euphony character- Any agreeable pleasing and harmonious sounds of a language)